प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
मालवा संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. मालवा संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
2. मालवा संस्कृति की पात्र परम्परा को समझाइए।
3. मालवा संस्कृति की तिथि का निर्धारण कीजिए।
उत्तर-
मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति
मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति के लिए यदि पुरातत्व की मानक शब्दावली का प्रयोग किया जाए तो 'हड़प्पा सभ्यता' और 'अहाड़ संस्कृति की तरह इसको नवदाटोली ताम्रपाषाणिक संस्कृति कहनां अधिक समीचीन होगा क्योंकि मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित नवदाटोली और माहेश्वर के उल्लेखों से सर्वप्रथम इस संस्कृति का विशिष्ट स्वरूप ज्ञात हुआ। नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर नवदाटोली (22° 11' उत्तरीय अक्षांश, 75°36' पू. देशान्तर) और उत्तरी तट पर माहेश्वर नामक पुरास्थल स्थित है। 'दकन कालेज एण्ड पोस्ट ग्रेजुएट रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे तथा एम. एस. विश्वविद्यालय, बड़ौदा ने यहाँ पर विस्तृत पैमाने पर उत्खनन सन् 1952-54 और 1957-59 में कराया जिसके फलस्वरूप पाँच सांस्कृतिक कालों के विषय में जानकारी प्राप्त हुई। अब तक इस संस्कृति से सम्बन्धित अनेक स्थलों का उत्खनन हो चुका है। इनमें मध्य प्रदेश के नवदाटोली, माहेश्वर, नागदा, कायथा, एरण, मनोती और डंगवाड़ा उल्लेखनीय हैं। मालवा संस्कृति के मृद्भाण्ड महाराष्ट्र प्रदेश के बहाल, सोनगाँव, चन्दौली, प्रकाश, इनामगाँव और दायमाबाद से भी उपलब्ध हुए हैं लेकिन दायमाबाद के पुरास्थल को छोड़कर शेष सभी पुरास्थलों से मालवा संस्कृति की विशिष्ट पात्र परम्परा के साथ ही साथ जोर्वे संस्कृति के पात्र खण्ड भी उपलब्ध हुए। दायमाबाद के उत्खनन से ज्ञात हुआ की पश्चिमी महाराष्ट्र के क्षेत्र में जोर्वे संस्कृति के आर्विभाव के पहले ही मालवा संस्कृति का प्रसार हो चुका था।
इन समस्त पुरास्थलों के उत्खनन से मालवा संस्कृति का जो स्वरूप हमारे सामने आता है उसकी झाँकी सर्वप्रथम हमें मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित नवदाटोली तथा माहेश्वर के उत्खनन के फलस्वरूप देखने को मिली। इसके पश्चात् अन्य अनेक पुरास्थलों से भी इसी प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हुए लेकिन मालवा के ताम्रपाषाणिक संस्कृति के सम्बन्ध में हमारी जानकारी अभी भी नवदाटोली के उत्खनन पर ही प्रधानरूपेण आधारित है। नवदाटोली के उत्खनन से मालवा संस्कृति के चार चरण पात्र परम्परा के आधार पर उद्घाटित हुए हैं। प्रथम चरण में एक विशिष्ट प्रकार की मृद्भाण्ड परम्परा थी। काले रंग से चित्रित लाल रंग की पात्र - परम्परा जिसे भारतीय पुरातत्व में मालवा पात्र - परम्परा के नाम से अभिहीत किया जाता है। संस्कृति के द्वितीय चरण में श्वेत चित्रित कृष्णलोहित पात्र - परम्परा समाप्त हो जाती है लेकिन प्रथम उपकाल की अन्य पात्र परम्पराएँ चलती रहती हैं। इस उपकाल का अन्त एक भीषण अग्निकाण्ड से हुआ। तृतीय चरण में दूधिया पात्र - परम्परा (Cream Slipped Ware) समाप्त हो जाती है। अन्य पात्र परम्पराओं के साथ 'जोर्वे' पात्र परम्परा के टोंटीदार पात्र मिलने लगते हैं। चतुर्थ चरण में उपर्युक्त पात्र - परम्पराएँ चलती है साथ ही साथ मटकों में चिपकवाँ अलंकरण (Applique designs) मिलने लगते हैं।
मृद्भाण्ड परम्परा - मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति में मुख्यतः चार प्रकार की पात्र परम्पराएँ प्रचलित थीं जिनमें से हल्के लाल रंग या गुलाबी रंग के मृद्भाण्ड को जिसके ऊपर काले रंग में चित्रण संजोये गये हैं, इस संस्कृति की विशिष्ट पात्र परम्परा माना जा सकता है। इसे मालवा मृद्भाण्ड परम्परा की संज्ञा भी दी जाती है। मालवा संस्कृति के प्रमुख पात्र प्रकारों में साधार तश्तरियाँ, पेंदीदार कटोरे, तसले, छिछली, थालियाँ, लोटे, घड़े तथा मटके आदि हैं। मालवा पात्र-परम्परा के मृद्भाण्ड ताम्रपाषाण काल के सभी चरणों में मिलते हैं। इन मृद्भाण्डों पर ज्यामितीय और प्राकृतिक दोनों प्रकार के अलंकरण संजोये हुए मिलते हैं। प्रमुख अलंकरणों में त्रिभुज जालकयुक्त हीरक, लहरदार रेखाएँ, संकेन्द्री वृत्त, कट्टम-कट्टे एक-दूसरों को काटते हुए खड़े तथा पड़े चाप, सूर्य, मानव एवं पशु की आकृतियों का उल्लेख किया जाता है। चित्रण के संयोजन में मालवा संस्कृति के कुम्भकारों ने अपनी दक्षता का अच्छा परिचय दिया है क्योंकि इनके चित्रण में सहज स्वाभाविकता दृष्टिगोचर होती है।
प्रथम चरण में मालवा मृद्भाण्डों के अतिरिक्त श्वेत रंग के चित्रण से युक्त कृष्ण-लोहित मृद्भाण्ड पात्र-परम्परा का प्रचलन अल्प मात्रा में मिलता है। श्वेत रंग के चित्रण से युक्त कृष्ण- लोहित पात्र - परम्परा के बर्तनों में कटोरे, कुल्हड़, फरई, थालियाँ, तथा छोटे आकार के पात्र प्रमुख हैं। इस पात्र - परम्परा के ज्यामितीय अलंकरणों में सीधी और वक्र रेखाएँ, लहरदार खड़ी रेखाएँ, त्रिभुज तथा ठोस हीरक उल्लेखनीय हैं।
तृतीय पात्र - परम्परा दूधिया स्लिप वाली मृद्भाण्ड परम्परा है जिसके प्रमुख पात्र प्रकारों में कटोरे, करई, साधार कटोरे एवं तश्तरियाँ प्रमुख हैं। एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए नृत्यरत मानव समूह, मुड़े हुए सींगों वाले बकरे, हिरण, वक्र रेखाएँ, त्रिभुज, लहरदार खड़ी रेखाएँ, ठोस हीरक आदि अलंकरण संजोये हुए मिलती है।
चौथी प्रमुख पात्र - परम्परा जोर्वे मृद्भाण्ड परम्परा है जिसके पात्रों के ऊपर गहरे लाल रंग का प्रलेप दिखलाई पड़ता है। टोटीदार नली वाले बर्तन, छोटी और लम्बी गर्दन वाले घड़े, तसले तथा गहरे कटोरे आदि प्रमुख पात्र प्रकार हैं। इस परम्परा के बर्तनों में टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ, त्रिभुज, चतुर्भुज आदि ज्यामितीय अलंकरण मुख्य रूप से मिलते हैं। मालवा संस्कृति की अन्य पात्र - परम्पराओं में धूसरित कृष्ण पात्र-परम्परा (Greyish Black Ware), रुक्ष लाल, काली तथा ताम्र रंग की पात्र - परम्परा का उल्लेख किया जा सकता है।
उपकरण - उपकरण तथा पुरानिधियाँ मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति में ताँबे का उपयोग अपेक्षाकृत सीमित मात्रा में किया जाता था। ताँबे के उपकरणों में चपटी कुल्हाड़ियाँ, मत्स्य काँटे, संजर और चूड़ियाँ आदि प्राप्त हुई हैं। दन्तुरकटक प्रविधिं से निर्मित लघुपाषाण उपकरण नवदाटोली के प्रायः प्रत्येक घर से प्राप्त हुए हैं इसलिए यह सम्भावना व्यक्त की जा सकती है कि हर परिवार लघुपाषाण उपकरणों का निर्माण अपनी आवश्यकतानुसार करता था। नवदाटोली के ताम्रपाषाणिक काल के ऊपरी स्तरों से नवपाषाण काल की प्रस्तर कुल्हाड़ियाँ भी उपलब्ध हुई हैं। अगेट, जैस्पर, कार्नेलियन, शंख, काँचली मिट्टी आदि के पात्र मिले हैं। ताम्र और मिट्टी की चूड़ियाँ, ताँबे के छल्ले, कुण्डल आदि अन्य महत्वपूर्ण पुरानिधियाँ हैं।
आवास - इस संस्कृति से सम्बन्धित विभिन्न पुरास्थलों के उत्खनन से आवास से जो साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, उनसे यह इंगित होता है कि ये लोग अपने मकानों के निर्माण में लकडी के लट्ठों का प्रयोग खम्भों के रूप में करते थे। मकानों की दीवालें बांस-बल्ली की बनाई जाती थीं जिसमें अन्दर और बाहर दोनों ओर से मिट्टी का लेपन कर दिया जाता था पक्की या कच्ची ईंटों के प्रयोग का कोई उदारहण नहीं मिलता है। मकान चौकोर, गोल अथवा वर्गाकार होते थे। कमरों की औसत माप 3 x 3.40 मीटर मिलता है। कमरों की फर्श को गोबर - मिट्टी से लीप-पोतकर साफ-सुथरा बनाया जाता था। इसके बाद स्वच्छता तथा सफाई के लिये फर्श की चूने से पोताई की जाती थी। मकान पास-पास बने होते थे। भवनों के अन्दर खाने-पीने और अनाज भरने के लिए प्रयुक्त होने वाले मिट्टी के बर्तन, सिल बट्टे और चूल्हे मिले हैं।
महाराष्ट्र में मालवा संस्कृति के आवास के जो साक्ष्य मिले हैं उनमें विविधता तथा मध्य प्रदेश के साक्ष्यों से भिन्नता है। इनामगाँव तथा दायमाबाद के उत्खनन से प्राप्त साक्ष्य विशेष उल्लेखनीय हैं। जमीन के ऊपर मिट्टी की दीवारों से निर्मित मकानों के अतिरिक्त गर्तयुक्त निवास (Pit-dwelling) के प्रमाण भी मिलते हैं।
मध्य प्रदेश में मालवा संस्कृति के लोग प्रायः गोलाकार मकान बनाते थे जबकि पश्चिमी महाराष्ट्र की मालवा संस्कृति के लोगों ने अधिकांशतः आयताकार मकानों का निर्माण किया है। मालवा संस्कृति के काल में इनामगाँव के 32 मकानों में से 28 आयताकार, एक गोलाकार तथा 3 गर्तयुक्त हैं। आयताकार मकानों की दीवारों के कोने गोल आकार के बना दिए जाते थे। मिट्टी की दीवारें बहुत ऊँची नहीं हैं। इन दीवारों के ऊपर जो स्तम्भ गर्त (Part-holes) मिले हैं उनसे ज्ञात होता है कि इन दीवारों के ऊपर बाँस-बल्ली का उपयोग करके झोपड़ियों की दीवारों को ऊँचा किया जाता था। मकानों की फर्श मिट्टी से निर्मित है। कतिपय घरों के बीच में आँगन के साक्ष्य मिले हैं। मकान सामान्यतः बड़े आकार के होते थे।
आयताकार मकान 8 x 5 मीटर आकार के मिले हैं। अधिकांश मकानों की फर्श पर एक अण्डाकार चूल्हा अन्दर स्थित मिला है तथा मकान के बाहर भी एक चूल्हा मिला है। इनामगाँव के गर्तयुक्त मकान वृत्ताकार थे जिनमें गड्ढों में नीचे उतरने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया था।
दायमाबाद से 28 मकानों के साक्ष्य मिले हैं। जिन्हें कार्यसूचक नाम देकर अनेक वर्गों में विभाजित किया गया है, जैसे- कार्यशाला (Workshop), शिली का मकान, पुरोहित का आवास; धार्मिक भवन इत्यादि। विभिन्न मकानों के फर्श से प्राप्त पुरावशेषों एवं अन्य साक्ष्यों के आधार पर इस प्रकार का विभाजन किया गया है।
कृषि तथा पशुपालन - नवदाटोली की ताम्रपाषाणिक संस्कृति के लोगों का आर्थिक जीवन कृषि तथा पशुपालन पर आधारित था। जौ, गेहूँ, चना, मसूर, मटर, धान, मूँग, उड़द आदि खाद्यान्नों की खेती होती थी। पालतू पशुओं में गाय, बैल, भैंस, भेड़, बकरी आदि प्रमुख थे। हिरण और सूअर की हड्डियों से यह इंगित होता है कि जंगली जानवरों का शिकार किया जाता था। जल-जीवों में कछुए तथा मछली की हड्डियाँ भी मिली हैं। इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि मालवा संस्कृति से सम्बन्धित पुरास्थलों से मिलने वाली पशुओं की हड्डियों की मात्रा पश्चिमी महाराष्ट्र और उत्तरी कर्नाटक के क्षेत्रों में स्थित जोर्वे संस्कृति के पुरास्थलों से प्राप्त हड्डियों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है।
अन्त्येष्टि - मध्य प्रदेश में मालवा संस्कृति के लोग अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार कैसे करते थे, इसके विषय में अभी तक कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं। महाराष्ट्र के क्षेत्र में दफनाकर अन्त्येष्टि संस्कार के प्रमाण इनामगाँव तथा दायमाबाद की मालवा संस्कृति के स्तरों से मिले हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि दक्षिण भारत की नवपाषाण काल की संस्कृति के सम्पर्क के फलस्वरूप यह परिवर्तन आया होगा महाराष्ट्र की मालवा की संस्कृति के सन्दर्भ में केवल बच्चों को दफनाने के साक्ष्य नहीं मिले हैं। इनामगाँव से 23 तथा दायमाबाद से 16 शवाधान मिले हैं। बच्चों को.. दफनाने के मिट्टी के बने हुए दो अन्त्येष्टिं कलश उपयोग किए जाते थे जिनमें शव रखकर कलशों के मुख से मुख जोड़ दिये जाते थे।
कालानुक्रम - मालवा संस्कृति के कालानुक्रम निर्धारण के सापेक्ष और निरपेक्ष दोनों ओर के साक्ष्य प्राप्त हैं। कायथा के उत्खनन से ज्ञात हुआ है कि मालवा संस्कृति का विकास अहाड़ संस्कृति के बाद हुआ। महाराष्ट्र प्रान्त के दायमाबाद तथा इनामगाँव नामक पुरास्थलों के उत्खनन से उपलब्ध साक्ष्यों से यह इंगित होता है कि मालवा संस्कृति जोर्वे से पहले विकसित हुयी। प्रारम्भ में एच. डी. सांकलिया ने पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का समय 1000 ई.पू. से 500 ई.पू. के मध्य आंका था। कालान्तर में उन्होंने इसको 1200 ई.पू. से 700 ई.पू. के बीच रखने का आग्रह किया।
कायथा, नवदाटोली, एरण तथा इनामगाँव से अनेक रेडियो कार्बन तिथियाँ उपलब्ध होती हैं जिनके आधार पर नवदाटोली की मालवा ताम्रपाषाणिक संस्कृति का कालानुक्रम प्रस्तावित किया जा सकता है। नवदाटोली नामक पुरास्थल के ताम्रपाषाणिक काल के स्तरों से आठ रेडियो कार्बन तिथियाँ प्राप्त हुई हैं जिनमें से अधिकांश 1600 ई.पू. के आस-पास की हैं। यदि इनमें एक मानक विचलन जोड़ दिया जाये तो मालवा संस्कृति के आरम्भ की तिथि 1700 ई.पू. प्रस्तावित की जा सकती है। इस प्रकार उपलब्ध साक्ष्यों के परिप्रेक्ष्य में मालवा संस्कृति का समय 1700 ई.पू. से लेकर 1200 ई.पू. के मध्य माना जा सकता है।
मालवा संस्कृति का उद्भव - मालवा संस्कृति के निर्माता कौन थे, यह एक उलझा हुआ प्रश्न है। इस संस्कृति के अधिकांश पुरास्थलों से मानव कंकाल नहीं मिले हैं। इसलिए इसके निर्माताओं के शारीरिक बनावट के विषय में हमें कोई जानकारी नहीं है। एच. डी. सांकलिया ने मालवा सांस्कृति के कतिपय पात्र प्रकारों के समरूप पश्चिमी एशिया के पुरास्थलों पर खोज निकाले हैं। नवदाटोली के टोंटीदार मृद्भाण्डों से मिलते-जुलते टोंटीदार पात्र स्याल्क 'ब' गियान के 'प्रथम काल' तथा हिसार के तृतीय 'अ' काल से प्राप्त हुए हैं। इसी प्रकार साधार कटोरे पर भी ईरान के मृद्भाण्डों का प्रभाव स्वीकार किया गया है। सांकलिया नवदाटोली के कतिपय पात्र प्रकारों पर सामूहिक मानव नृत्य के दृश्य को भी पश्चिमी एशिया से अनुप्रमाणित मानते हैं। उनके अनुसार इस तरह के उदाहरण ईरान के स्याल्क 'ब' एवं चगर बाजार नामक पुरास्थलों से प्राप्त पात्रों पर मिलते हैं। इस आधार पर मालवा संस्कृति के उद्भव के लिए पश्चिमी एशिया की संस्कृति को उत्तरदायी माना जा सकता है। एस. आर. राव तथा स्वराज्य प्रकाश गुप्त आदि कतिपय पुरातत्ववेत्ता. इस निष्कर्ष से सहमत नहीं हैं। ईरान में टोंटीदार बर्तनों की तिथि 900 ई.पू. से पहले की नहीं है। ईरान में इन मृद्भाण्डों के साथ लोहे के उपकरण भी प्राप्त हुए हैं जबकि मालवा की संस्कृति ताम्रपाषाणिक है और मालवा में यह संस्कृति 900 ई.पू. के पहले ही समाप्त हो चुकी थी। दूसरी कठिनाई यह है कि मालवा संस्कृति में टोंटीदार बर्तन उसके प्रारम्भिक स्तरों से नहीं बल्कि तृतीय चरण से मिलते हैं, उस समय तक मालवा संस्कृति शताब्दियों पुरानी हो चुकी थी। कतिपय पुराविदों की यह मान्यता है कि प्राचीन भारत में साधार कटोरे की एक लम्बी परम्परा मिलती है। राजस्थान में कालीबंगा के 'प्रथम काल' तथा सिन्धु में चान्हुदड़ों के झूकर काल स्तरों से इस तरह के पात्रों के उदाहरण मिलते हैं। परन्तु हम यह मान भी लें कि मालवा संस्कृति के लोग पश्चिमी एशिया से यहाँ आए तो इस स्थिति में मालवा के उत्तर - पश्चिम में ऐसे पुरास्थलों का मिलना आवश्यक है जहाँ से इस संस्कृति के पुरावशेष प्राप्त हो सकें। परन्तु अभी तक ऐसे साक्ष्य नहीं मिले हैं।
वाई. ए. जेडनेप्रोस्की नामक रूसी पुराविद् ने मालवा संस्कृति की तुलना मध्य एशिया की परगना घाटी में स्थिति 'चुस्त संस्कृति' से किया है। तुलना के लिए कतिपय पात्र - प्रकारों तथा चित्रण अभिप्रायों को आधार माना गया है। जेडनेप्रोव्स्की की इस मान्यता से स्वराज्य प्रकाश गुप्त सहमत नहीं हैं। चुस्त संस्कृति के लोग किलेबंदी की कला में पारंगत थे जबकि मालवा संस्कृति में इसका अभाव है। चुस्त संस्कृति के लोग अपने मृतकों को विधिवत् दफनाते थे जबकि मालवा संस्कृति से सम्बन्धित शवाधान अभी तक नहीं मिले हैं।
मालवा संस्कृति के उद्भव के लिए भारत की सीमा से बाहर नहीं बल्कि भारत की सीमा के अंदर ही साक्ष्य ढूँढने की आवश्यकता है। मालवा संस्कृति के कतिपय पात्र प्रकार पश्चिमी मध्य प्रदेश के क्षेत्र में स्थित कायथा नामक पुरास्थल से प्राप्त हुए हैं। यद्यपि इन दोनों संस्कृतियों के बीच समय का व्यवधान है तथापि यह हो सकता है कि कायथा के अतिरिक्त अन्य पुरास्थलों पर दोनों के बीच सांस्कृतिक सम्पर्क हुआ हो।
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- प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
- प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
- प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
- प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
- प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
- प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
- प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
- प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
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- प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
- प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
- प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
- प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
- प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
- प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
- प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
- प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
- प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
- प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
- प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
- प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
- प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
- प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
- प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
- प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
- प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
- प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
- प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
- प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
- प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
- प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।